नई दिल्लीः केजी बालाकृष्णन के 11 मई 2010 को देश के मुख्य न्यायाधीश पद से रिटायर होने के बाद से देश की शीर्ष अदालत में पिछले छह साल से कोई भी अनुसूचित वर्ग का जज नहीं चुना गया है। यही नहीं देश के किसी भी हाईकोर्ट में इस समय दलित वर्ग से ताल्लुक रखने वाला मुख्य न्यायाधीश नहीं है। यह हाल तब है जबकि देश में करीब 16 फीसद दलित आबादी है। दो प्रकार के सवाल उठते हैं कि क्या अनुसूचित वर्ग के लोग न्यायिक सेवा में अपेक्षित संख्या में नहीं है या फिर काबिलियत के आधार पर उन्हें कोलेजियम के स्तर से सुप्रीम कोर्ट तक पदोन्नति अभी नहीं मिल पा रही। यह हाल तब है कि जब इसी देश में दलित वर्ग से निकलकर डॉ. अंबेडकर जैसे कानूविद पैदा हुए और उन्होंने संविधान का निर्माण किया।
10 साल में सिर्फ तीन महिला जज
सुप्रीम कोर्ट में पिछले दस साल में सिर्फ तीन महिला जज नियुक्त हो सकी हैं। इसमें जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई सेवानिवृत्त हो चुकी हैं जबकि जस्टिस बानुमती अभी सुप्रीम कोर्ट मे कार्यरत हैं।
कोलेजियम नियुक्त करती है जज
सु्प्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम सिस्टम है। इसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश करते हैं जबकि उनके अंडर में चार अन्य जज बतौर सदस्य कार्य करते हैं। विधि एवं न्याय मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि कोलेजिमय के स्तर से कोई ठोस मापदंड का पालन जजों को पदोन्नति देकर सु्प्रीम कोर्ट में लाने में नहीं किया जा रहा।
हालिया में तीन जज हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली कोलेजियम ने अभी हाल में हाईकोर्ट के तीन मुख्य न्यायाधीश को पदोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट में तैनाती दी है। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, केरल हाईकोर्ट के अशोक भूषण और एमपी हाईकोर्ट के एएम खनविलकर को सुप्रीम कोर्ट में तैनाती दी गई।
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