Thursday, May 19, 2016

कभी घर चलाने के लिए दूध बेचा करती थीं ममता!

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी पर लोगों ने भरोसा जताया है। अभी तक आए रूझान के हिसाब से तुणमूल कांग्रेस भारी बहुमत से जीत दर्ज करती नजर आ रही है। एक बार फिर दीदी के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज सजेगा। आज भले ही ममता सत्ता के शिखर पर हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए ममता को कड़ी मेहनत करनी पड़ी।
ममता बनर्जी का जीवन संघर्ष से भरा रहा है, शून्य से शिखर तक पहुंचने के लिए ममता को अपने जीवन ने कई तकलीफों से गुजरना पड़ा। कभी ऐसा समय भी था जब ममता बनर्जी को गरीबी के चलते दूध बेचने का काम करना पड़ा था। उनके लिए अपने छोटे भाई-बहनों के पालन-पोषण में अपनी विधवा मां की मदद करने का यही अकेला तरीका था।
कभी घर चलाने के लिए दूध बेचा करती थीं ममता!
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी पर लोगों ने भरोसा जताया है। अभी तक आए रूझान के हिसाब से तुणमूल कांग्रेस भारी बहुमत से जीत दर्ज करती नजर आ रही है।
ममता का जन्म 5 जनवरी 1955 को हुआ था। ममता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब वह बहुत छोटी थीं तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। बाद में उन्होंने अपने परिवार को चलाने के लिए दूध बेचने का काम शुरू किया।  ममता ने कानून और शिक्षा के अलावा कला में भी डिग्री हासिल की है। शुरुआत में ममता को राजनीति में सुब्रत मुखर्जी लाए थे। अब मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस में ममता के अनुयायियों में से एक हैं।
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उन्होंने 70 के दशक में कांग्रेस की छात्र इकाई से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। उस समय इस इकाई ने कोलकाता से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई थी। मुसीबत के उन दिनों ने ममता को सख्त बना दिया और उन्होंने पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों को सत्ता से बेदखल करने के अपने सपने को पूरा करने में दशकों गुजार दिए।
2006 के विधानसभा चुनावों में ममता को 294 में से केवल 30 सीटें ही मिली थीं। ममता ने मात्र 13 साल पहले ही कांग्रेस से अलग होकर अपनी नई पार्टी गठित की थी। ममता को 1984 से पहले पश्चिम बंगाल के बाहर कोई नहीं जानता था। लेकिन जब उन्होंने अपने पहले लोकसभा चुनाव में ही जादवपुर से माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को पराजित कर दिया तो वह देशभर में मशहूर हो गईं थीं। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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1991 में वो प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में शामिल हुईं, लेकिन वह खेलों को विकसित करने के प्रति सरकार की उदासीनता देखकर नाखुश थीं। साल 1993 में वह मंत्रालय से बाहर हो गईं। जब उन्हें एहसास हुआ कि कांग्रेस वास्तव में पश्चिम बंगाल से कम्युनिस्टों को उखाड़ना नहीं चाहती है तो उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का गठन किया।
वाम मोर्चे को पराजित करने की कोशिश में वह लगातार पाला बदलती रहीं। उन्होंने 1998 से 2001 तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का साथ दिया, साल 2001 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ खड़ी हुईं और फिर दोबारा 2001-06 तक बीजेपी नेतृत्व वाले गठबंधन का साथ दिया।
इस बीच ममता दो बार रेल मंत्री बनीं, केंद्रीय मंत्री बनने के बावजूद ममता अपने कोलकाता के कालीघाट मंदिर के नजदीक स्थित एक मंजिला घर में रहती रहीं। वह हमेशा सादी सूती साड़ी, कंधे पर एक झोले और रबड़ की चप्पलों में नजर आईं। वह सात बार संसद सदस्य चुनी गईं। ममता राजनीति के अलावा चित्रकारी और लेखन में भी रुचि रखती हैं। वह एक अच्छी रसोईया भी हैं। वह धार्मिक भी हैं और हर साल काली पूजा में जरूर हिस्सा लेती हैं।
http://khabar.ibnlive.com/news/politics/mamta-benerjee-profile-481049.html

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