बाल विवाह आज के आधुनिक शिष्ट व् सभ्य समाज के मुँह पर अशिष्ट और अर्ध सभ्य समाज का जोरदार तमाचा है . जिसकी गूंज सदियों से चली आ रही इस अविकसित और अशिष्ट परम्परा की याद ताज़ा कर दी है .जिसे देखकर और सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है .आंखे स्थिर हो जाती है कदम अंगद के पांव बन जाते है .किन्तु यह कुलीन और विकसित समाज किंकर्तव्यविमूढ़ हो मूक बनकर देखने के सिवाय कुछ कर भी नही पाता है .आखिर इस गम्भीर प्रकरण पर समाज की यह संवेदनशून्यता किस कारण से है .सिर्फ सरकार और कानून के भरोसे पर चुप बैठना ही हमारा मकसद नही होना चाहिए बल्कि हमे फिर से संगठित और सक्रिय होकर समाज में जन चेतना लाना है और ऐसे समाज को जागरूक करना है जिस समाज में ऐसी कुरितियो को पुष्पित और पल्लवित किया जा रहा है .
आज दुनिया कहाँ से कहाँ प्रगति कर पहुँच चुकीं है किन्तु इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में जहाँ हम श्रेष्ठ और सभ्य कहलाने का स्वांग रचते है वही हमारे ही समाज में एक ऐसा भी असभ्य अर्ध सभ्य या अशिष्ट समाज भी रहता है जो इन सब आधुनिकता वैज्ञानिकता और सभ्यता से बेखबर और बेसुध होकर बाल विवाह जैसी अशिष्ट कुरितियो और मान्यताओ को प्रोत्साहित और पोषित कर रहा है .उसे न तो समाज से डर है और न ही बाल विवाह निरोधक किसी कानून से .वह तो बस उस सदियों से चली आ रही अंधविश्वास की परम्परा को मानता और जानता है तथा उसी लकीर का फकीर बन अपने कर्तव्य को आगे बढ़ा रहा है . जिसका ताजातरीन मिशाल आज देखने को मिला है ..
आज बाल जोड़े के विवाह की चर्चा जोरो पर है की एक चार साल की लड़की का विवाह आठ साल के लड़के के साथ कर दिया गया .आखिर यह किस दृष्टि से खरा है इसके औचित्य पर प्रश्न उठाना लाज़िमी है .इस ज्वलंत और सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे पर आवाज़ बुलंद करना सबकी सामूहिक जिम्मेदारी बनती है .कोई भी इससे मुंह नही मोड़ सकता है और न ही इस असमाजिक कृत्य से अपना पल्ला झाड़ सकता है क्योकि मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी होने के नाते उसका समाज के प्रति कुछ दायित्व व् कर्तव्य होते है जिसके तहत उसे कुछ न कुछ सामाजिक कार्यो में अपनी जिम्मेदारी की भूमिका निभानी पड़ती है .हम सब आंख मूदकर चुप नही बैठ सकते है .ऐसे कुरितियो और कुसंस्कारों के अंधविश्वास को मिटाने के लिए हमे उन मलिन और अविकसित या फिर अर्धविकसित समाज में जाकर उनको जागरूक करने के लिए अलख जगाना है .
शिष्ट और अशिष्ट तथा सभ्य और असभ्य समाज के अंतर की खाईं को पाटने का वक्त है नही तो समाज के विकास के पहिये की रफ्तार में तारतम्यता का अंतर व् अभाव बढ़ता ही जायेगा .और वाल विवाह जैसी कुरितियो से छुटकारा पाना मुश्किल होगा .लोक जागरण के अभाव में इस कुप्रथा को निर्मूल नष्ट करना असहज प्रतीत होगा .ऐसे मामलो में मौन और नजरअंदाज का रवैया अपनाना उन नन्हे मुन्ने अवयस्क बच्चो का बचपन उनसे छीनने के अपराध में लिप्त लोगो को अपना सहयोग देना होगा .अतःसबको मिलकर समाज से बालविवाह जैसी कुप्रथा को खत्म करने का संकल्प लेना है . और समाज के इस अभिशाप को दूर करना है .
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