यह भौतिकता का दौर है और इसमें हर मुद्दा अंतत: फायदे या नुकसान के सवाल पर टिक जाता है। आश्चर्य नहीं कि धर्म को भी इसी कसौटी पर कसा जाता है। धर्म के आलोचक उन लोगों की ओर इशारा करते हैं, जो धर्म का राजनीतिक व आर्थिक फायदा उठाते हैं और धर्म के नाम पर झगड़े व हिंसा फैलाते हैं। लेकिन जिन लोगों के लिए धर्म आस्था का सवाल है, जो धर्म से कोई प्रत्यक्ष भौतिक लाभ नहीं चाहते और न उसके नाम पर किसी से लड़ना चाहते हैं, उन्हें भी धर्म से कुछ ऐसे लाभ होते हैं, जिसके बारे में वे शायद नहीं जानते।
वैज्ञानिकों का यह कहना है कि धार्मिकता और सेहत के इस रिश्ते पर ज्यादा खोज की जरूरत है, ताकि यह रिश्ता ज्यादा स्पष्ट हो सके। पहले भी कई शोध यह बता चुके हैं कि धार्मिक लोग बीमारियों से बेहतर ढंग से निपटते हैं और बीमारी या ऑपरेशन के बाद जल्दी स्वस्थ होते हैं।
पिछले दिनों अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया कि योग, ध्यान और कीर्तन से अल्जाइमर रोग के मरीजों को फायदा होता है। इस तरह के शोध बहुत ज्यादा नहीं हुए हैं और इनसे कोई निर्णायक वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं निकाले गए, इसलिए हम कुछ बातों का कयास ही लगा सकते हैं।
शायद धार्मिकता और सेहत के बीच इस सकारात्मक रिश्ते की एक वजह यह है कि आस्था व्यक्ति को अपने अंदर की अतिरिक्त जीवन शक्ति को सक्रिय करने में मदद करती है। धर्म पर आस्था न रखने वाला व्यक्ति यह मानता है कि जितना वह सोचता-समझता है, उतनी ही उसकी चेतना की सीमा है। धार्मिक व्यक्ति यह मानता है कि ईश्वर की असीम चेतना उसकी चेतना से जुड़ी है, इसलिए उसमें अतिरिक्त सकारात्मक ऊर्जा और आशावाद होता है। ईश्वर का स्वरूप मनुष्य करुणा, आनंद, सौंदर्य आदि गुणों के स्रोत के रूप में महसूस करता है, इसलिए इन गुणों की उपस्थिति वह अपने जीवन में लगातार महसूस करता है।
वह इसी के साथ कष्टों को भी ईश्वर की इच्छा और जीवन का अनिवार्य हिस्सा मानता है, इसलिए उनके प्रति उसका रवैया भी बहुत कटु नहीं होता। कुछ शोधकर्ताओं का यह भी अनुमान है कि धार्मिक लोग ज्यादा नियमित, अनुशासित और स्वास्थ्य के अनुकूल जीवन बिताते हैं, यह भी उनके ज्यादा स्वस्थ होने की एक वजह हो सकती है।
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