Wednesday, June 22, 2016

सामाजिक शासन प्रणाली के प्रति लापरवाह

जब कोई लोकसेवक जनता की उचित सेवा करने के बजाय ,उसके आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास की जगह अपनी और अपने परिवार के सर्वांगीण विकास के इर्दगिर्द अपनी  सारी राजनैतिक इच्छाशक्ति केन्द्रित कर देता है तो उसके लिए देशवाद और समाजवाद गौण होकर स्ववाद महत्वपूर्ण हो जाता है और वह इसी को लक्ष्य बनाकर अपने राजनीतिक शक्तियों का दुरपयोग करता रहता है जिससे देश की जनता त्रस्त रहती है और उसके अपने मस्त रहते है .लोग राजनीति में आते तो है देश और उसकी जनता के वर्तमान एवं भविष्य को सुधारने और सवारने के लिए लेकिन सत्तासीन होते ही अपने लोगो के भविष्य को सजाने सवारने का काम करने लगते है ,उनके नारे और वादें होते कुछ है और वे करते कुछ और है .ऐसे राजनेता जनता के हिमायती होने का दावा तो खूब करते है लेकिन जनता के कसौटी पर कितना खरा उतरते है यह तो जनता ही समझती और जानती है.

एक सच्चाई अवश्य है की अब राजनीति में शुचिता का ह्रास बढ़ी तेजी से हो रहा है लोग भ्रष्टाचार को नजरअंदाज करते दीख रहे है और जनता की भलाई की जगह अपना और अपने लोगो की भलाई करने से नही हिचक रहे है .ऐसे नेताओ के लिए जनता सिर्फ सत्ता की सीढी है जो उन्हें सत्ता के सिंघासन तक पहुँचाने का काम करती है और सत्तासीन होते ही वे सभी राजा होते है वहा न कोई दलित होता और न कोई अन्य जाति वर्ग का ..सभी राजा होते है और जनता तो आम जनता होकर प्रजा ही बनी रहती है तो मलाई कौन काटेगा?
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जाने अनजाने में हमारी  बेपरवाही कही जी का जंजाल तो नही बनती जा रही है .ऐसा क्यूँ है कि हम अपने आस पास घट रही घटनाओ से इतने बेपरवाह और उदासीन होते जा रहे है. कही हमारी यही उदासीनता हमारे समाज को भ्रष्ट और दूषित बनाने में सहयोग तो नही कर रही है ?क्या समाज में हो रही हर गतिविधियों को हम इसलिए नजरअंदाज कर देते है कि उससे हमारा कोई सीधा सरोकार नही होता है या फिर अपनी लापरवाही के कारण हम उससे लापरवाह होते रहते है .वजह कुछ भी हो किन्तु मकसद साफ है कि हमारी बेपरवाही के कारण ही सभी सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओ एवं तंत्रों में भ्रष्टाचार ,कामचोरी और सीनाजोरी व्याप्त है और हमारी बेपरवाही का ही नतीज़ा है की इसकी जड़े दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है .

अक्सर हम लोग अपने आस पड़ोस में घट रही छोटी मोटी घटनाओ का संज्ञान न लेकर उसकी अनदेखी कर देते है चाहे वह अच्छी हो या फिर बुरी ,लेकिन यही अनदेखी आगे चलकर भारी पड़ने लगती है तथा परोक्ष या अपरोक्ष हम उससे अछूते नही रहते ,किसी न किसी रूप में उसका प्रभाव हमारे व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित अवश्य करता है .मानव का यह सहज और स्वाभाविक गुण है कि जब कभी वह छला जाता है तो बड़े बेबाकी से कह देता है की समाज में चारो ओर बड़ी बेईमानी और भ्रष्टाचार है कोई जीये तो जियें कैसे ?लेकिन जब तक वह किसी समस्या से दो चार नही होता तब तक उसे चारो ओर हरियाली ही हरियाली नज़र आती है .

जरा आप गौर कीजिये कि क्या आप कभी इन चीजो पर ध्यान दिया है यदि दिया भी है तो क्या कार्यवाही के लिए कोई क़ानूनी कदम उठाया है ...जैसे अपने गाँव या शहर के प्राथमिक पाठशालाओ में बच्चोंको मिड डे मिल योजना के तहत दिए जा रहे भोजन की गुणवत्ता पर कभी आपने स्वतः संज्ञान लेकर ध्यान दिया की उन्हें क्या परोसा जा रहा है और क्या मीनू है ?जैसे इस समय गर्मी की छुट्टीयों में ख़ासकर...क्या आपने अपने आस पास के स्कूलो में जाकर वहा की शिक्षा व्यवस्था का जायजा लिया भले ही आपका बेटा बेटी उस स्कूल न पढ़ता हो ?क्या कभी आपने अपने गली मोहल्ले के राशन की दुकानों में जाकर उनके राशन वितरण का ब्योरा माँगा और यह सुनिश्चित करने की कोशिश की राशन वितरण में किसी प्रकार की अनियमितता न होने पाए ?और क्या आपने कभी अपने आस पड़ोस में रहने वाले उन गरीब परिवारों से यह जानने की कोशिश करी कि उन सभी का BPL कार्ड बना है या नही भले ही आपका उनसे कोई सम्बन्ध न हो किन्तु मानवता के लिए आपको ये सब करना चाहिए ...यदि कही किसी दफ्तर में कोई किसी से रिश्वत मांग रहा है तो क्या आपने रोकने की कोशिश की ..या फिर किसी छेड़खानी के दौरान अथवा किसी के साथ किसी भी प्रकार की नाइंसाफी होते देख क्या कभी मदद के लिए आपके हाथ आगे बढ़े ..इत्यादि ..

प्रायःहमारे सामने ऐसे बहुत से अवसर आते है लेकिन हम उनसे मुंह मोड़ लेते है .यदि हम तत्काल ऐसे असामाजिक कार्यो का विरोध करना शुरू कर दे तो मुमकिन है की समाज से बहुत हद तक बुराईयों को खत्म किया जा सकता है लेकिन ऐसा हम करते नही है और उसी का नतीज़ा होता है कि बार बार वही गलतियाँ दोहराई जाती है ..जैसे एक बार फिर बिहार की परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठने लगे है ..इस समय बिहार में विश्वविद्यालय की परीक्षा चल रही है और रोहतक के एक कालेज में छात्र प्रकाश की व्यवस्था न होने के कारण मोबाईल के प्रकाश की रोशनी में परीक्षा दे रहे है जिसमे नकल की खुली छूट होने के कारण परीक्षार्थी किताब कापी से लैस होकर परीक्षा कक्ष में परीक्षा देकर परीक्षा के नियमो की धज्जियां उड़ा रहे है ...

वैसे पहले ही बिहार के शिक्षा व्यवस्था पर बहुत कुछ कहा सुना जा चुका है लेकिन पिछली गलती से सबक सीखने की बजाय गलती पर गलती दोहराई जा रही है और हम सभी इस परवाह से बेपरवाह होकर अपने लापरवाही एवं उदासीनता के कारण समाज में भ्रष्टाचार को अंकुरित होकर पुष्पित और पल्लवित होने में अपनी सहभागीता निभा रहे है जो समाज के वर्तमान और भविष्य की आने वाली पीढ़ी के लिए अभिशाप है .इसलिए यदि हम सभी अपने आस पास में घट रही छोटी छोटी घटनाओ और भ्रष्टाचार पर ध्यान देने लगे तो समाज से इन बुराइयों को मिटाया अथवा कम किया जा सकता है.


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