Wednesday, June 22, 2016

नारी

नारी हमेशा कोमलांगी , सहनशील , संस्कारवान, संस्कृति की धरोहर को अपने अंदर समेटे हुए विशाल हृदया, विनयी, लज्जाशील रही है। किन्तु जहां ही इन गुणों का परित्याग हुआ है वहाँ नारी का अपमान होते देर नहीं लगी है। नारी को ही संस्कारों की धात्री क्यों कहा जाता है? क्यों पुरुष को ये गौरव नहीं मिला ? आइए जाने कुछ तथ्य जिनसे हमे अपने नारी होने पर गर्व होगा और होना  भी  चाहिए। 

नारी का हर रूप मनभावन होता है जब वह छोटी सी  नन्ही परी के रूप मे जन्म लेती है अपनी मन मोहक कलाओं से सबके दिलों पर छा  जाती है । नारी का केवल बाहरी सौंदर्य देखने वाले विक्षिप्तों ने तो इसकी परिभाषा ही बदल दी है। अपनी अवस्थिति के लिए नारी स्वयं भी कई बार दोषी होती है। शायद कुछ आजाद विचारों वाली महिलाएं मेरे कथन से सहमत न हों , किन्तु सत्य तो सत्य है। उत्तम संस्कारों वाली महिलाएं अपनी संतानों को ही नहीं बल्कि कई पीढ़ियों को शुद्ध कर देती  है। इसलिए नारी का  संस्कारी होना उतना ही जरूरी है जितना हम सब जीवों और पेड़ पौधों को जीवित रहने के लिए पानी। उसे विभिन्न रूपों मे अपने  दायित्वों का भली भांति निर्वहन करना होता है और  हमेशा वह ही स्त्री खरी उतर पाती है जो इन गुणों से परिपूर्ण होती है ।   

क्षमा, प्रेम, उदारता, निरभिमानता , विनय , समता ,शांति , धीरता , वीरता , सेवा , सत्य, पर दुःख कातरता , शील , सद्भाव , सद्गुण इन सभी सौंदर्य से युक्त नारी गरिमामयी बन पाती है। 
लज्जा नारी का भूषण है और यह शील युक्त आँखों मे रहता है । बीमार एवं बड़ों बूढ़ों की सेवा केवल लज्जा के नाम पर न करना लज्जा का दुरुपयोग है , सामने से सेवा नहीं करना पीछे से दुनिया भर की बुराई करना लज्जा का अपमान है । ये लज्जा नहीं कदाचित निर्लज्जा ही है। अपने भूषण को पहचानो  ये  गहना प्रभु ने हम नारियों को ही पहनाया है।

वाणी मे , व्यवहार मे तथा शारीरिक हाव भाव से गर्व, उग्रता, कठोरता , टेढ़ापन रंच मात्र भी झलकने पर महिलाएं ही  ऐसी  महिला का  सम्मान नहीं करती। क्योकि मधुर , विनम्र , स्नेहपूर्ण वाणी  से सबका दिल जीतने की कला प्रभु ने स्त्रियॉं को ही प्रदान की है । जो एक मूक पशु को भी समझ मे आती है। 

संकट के समय भी कर्तत्य का पालन करते हुए मैदान मे डटे रहना धीरता है और विरोधी शक्तियों को निर्मूल करने का साहस तथा बुद्धिमानी से युक्त प्रयत्न करना वीरता है । ये भी स्त्रियों का ही भूषण है परंतु इसका प्रयोग आना चाहिए । 

गंभीर व्यक्ति और स्त्री तेज सब मानते है और उसी का आदर करते हैं । 

समानता का गुण भी महिलाओं को ही प्राप्त है किन्तु आज की नारी असमान रहने को ही अपनी विजय मानती है । जबकि वह चाहे तो समान दृष्टि रख कर परिवारों को टूटने से बचा सकती है। सिर्फ अपना अपना करने चाहत ने आज परिवारों को तोड़ दिया है जबकि ये गुण संस्कारी महिलाओं का नहीं है । उसे तो समानता का गुण मिला है। उसे अपने निज गुण का ही अनुसरण करना चाहिए। 

दुःख कष्ट और प्रतिकूलता सहन करने का स्वाभाविक गुण महिलाओं को ही प्राप्त है । नारी पुरुष की अपेक्षा अधिक सहन शील होती है ।

कुशल प्रबंधन का स्वाभाविक गुण भी महिलाओं का है वे बहुत अच्छी तरह एवं  श्रेणी बद्ध तरीके से हर  काम को अंजाम देती है, घर हो या बाहर दोनों जगहों पर नारी ने  स्वयं को सिद्ध किया है ।  

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