Thursday, June 1, 2017

एक IAS की कहानी

शाम के आकाश का सुनहरापन. कहते हैं कि सपने भी ऐसे ही सुनहरे होते हैं. वो सतरंगी सपने जो इंसान कभी बंद, तो कभी खुली आंखों से जिंदगी के हर दौर में, हर पड़ाव पर देखता है. सपने इंसान की जिंदगी का वो सच है जो अगर हकीकत की कसौटी पर खरे उतर जाए तो जिंदगी को खुशियों की बहारों से सराबोर कर देते हैं. लेकिन सपनों और हकीकत के बीच के सफर में जो चुनौतियां पेश आती है दरअसल यहीं चुनौतियां सपने देखने वाले के हौसलों का असली इम्तिहान लेती हैं.
उत्तर प्रदेश का शहर मेरठ. इस शहर में भी कभी एक नन्ही लड़की ने एक सपना देखा था लेकिन उस सपने की राह में जहां सैकड़ों मुसीबतें दीवार बन कर खड़ी हो गईं वहीं ढेरों चुनौतियों ने उसके सब्र का कड़ा इम्तिहान लिया. एक बेटी ने देश की सबसे बड़ी परीक्षा में पास होने का सपना देखा था. इरा सिंघल ने आईएएस बनने का ख्वाब देखा था. लेकिन इरा के जहन में पलते इस सुनहरे सपने के साथ ही उसके जिस्म में एक ऐसी बीमारी भी पल रही थी जिसने उसके इस सपने के आगे लगा दिया था प्रश्नचिन्ह. सेल्फी विथ डॉटर वाले इस देश में इरा सिंघल के माता – पिता को भी ना जाने कितने पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों की चुनौतियों से दो चार होना पड़ा. लेकिन इरा ने ना तो अपनी बीमारी के आगे घुटने टेके और ना ही अपनी किस्मत के आगे समर्पण किया. वो चलती रही. वो लड़ती रही. एक के बाद एक मुश्किलों को शिकस्त देकर आखिरकार उसने हासिल कर ही ली अपनी मंजिल. लेकिन इरा की ये कहानी महज एक सपने के सच होने की दास्तान भर नहीं हैं. ये कहानी एक ऐसे हौसले की है जिसने समाज और सरकार के पूर्वाग्रहों की मजूबत चट्टान को एक ही झटके में नेस्तनाबूद कर दिया है.
यूपीएससी टॉपर इरा सिंघल बताती हैं कि मैं यही कहना चाहूंगी कि जिसका जो जो सपना है चाहे वो पढ़ाई से रीलेटिड हो या किसी और चीज से रीलेटिड हो अगर आप सच्चे मन से उसकी तरफ एफर्ट कर सकते है तो प्लीज करिए और आपको वो जरुर मिलेगा. बस किसी से डरिए मत, निराश मत होइए. किसी और की बात सुनकर ये मत सोचिए कि आपका सपना खराब है या उसमें कोई कमी है. अपनी तरफ से पूरी मेहनत कीजिए और आप जरुर सफल होंगे.
संघ लोक सेवा आयोग. ये वो संस्था है जो देश की प्रशासनिक व्यवस्था के बोझ को ढोने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों का चयन करती है. देश में ब्रिटिश हुकूमत के दौर से ही भारतीय प्रशासनिक सेवा सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित नौकरी मानी जाती रही है और यही वजह है कि IAS बनना करोड़ों नौजवानों का सपना रहा है.
शनिवार यानी 4 जुलाई को संघ लोक सेवा आयोग ने जब नतीजों का ऐलान किया तो देश भर की मीडिया में ये चेहरा छा गया था. 30 साल की इरा सिंघल फिजीकली चैलेन्जड होने के बावजूद जनरल कैटेगरी में यूपीएससी परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल करने वाली पहली महिला हैं. इरा की ये चमकती कामयाबी कितनी बड़ी है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संघ लोक सेवा आयोग की इस परीक्षा के प्रिलिमनरी एग्जाम में करीब साढे चार लाख प्रतियोगी शामिल हुए थे जिनमें से 16,286 सफल उम्मीदवार मुख्य परीक्षा में बैठे थे. इसी साल मार्च में मुख्य परीक्षा के नतीजे भी घोषित हुए जिनमें 3038 कैंडिडेट को पास घोषित किया गया था और फिर इन सभी को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था.
साल 2015 में IAS का इम्तिहान टॉप करने वाली इरा सिंघल की कामयाबी की ये कहानी नई नहीं है. साल 2010 में उन्होंने पहली बार सिविल सर्विसेज का इम्तिहान पास किया था लेकिन सरकार ने उन्हें नौकरी के लायक नहीं माना, क्योंकि मेडिकल तौर पर उन्हें इसके लिए अयोग्य बताया गया था. बावजूद इसके इरा सिंघल ने हार नहीं मानी और अपनी शारीरिक कमी को कभी भी अपने लक्ष्य की राह में रुकावट बनने नहीं दिया.
खास बात ये है कि इरा सिंघल ने सिविल सर्विसेज परीक्षा चार बार पास की है. साल 2010 में वो सिविल सर्विसेज परीक्षा में 815 वां रैंक हासिल कर भारतीय राजस्व सेवा यानी आईआरएस अधिकारी बनीं. लेकिन नौकरी के लिए मेडिकली अनफिट करार दिए जाने के बाद उन्होंने कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया था. ट्रिब्यूनल में कानूनी लड़ाई चलती रही और इस बीच इरा सिंघल ने साल 2011 और 2013 में फिर से सिविल सर्विसेस इम्तिहान पास कर दिखाया. साल 2014 में वो कैट से यूपीएससी के खिलाफ अपना केस भी जीत गई और नतीजतन उन्हें आईआरएस यानी इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस की ट्रेनिंग करने हैदराबाद भेजा गया. लेकिन साल 2014 में आईएएस का इम्तिहान टॉप कर उन्होंने अपने करीबियों को भी चौंका कर रख दिया.
लंबी जद्दोजहद के बाद आज इरा सिंघल अपने उस सपने की दहलीज पर खड़ी हैं जहां से आगे हककीत का सफर शुरु होता है. तमाम मुश्किलों, मुसीबतों, पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों से जूझते हुए इरा ने अपने आईएएस बनने के उस सपने को सच कर दिखाया जो कभी उन्होंने जागती आंखों से देखा था.
उत्तरप्रदेश के मेरठ शहर से इरा सिंघल और उनके खानदान का यूं तो पुराना नाता रहा है लेकिन उनके परदादा सहारनपुर के रहने वाले थे. इरा के पिता राजेंद्र सिंघल का कहना है कि उनके दादा डिप्पी कलेक्टर थे लेकिन ब्रिटिश हुकूमत से अनबन के चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी और वो मेरठ में ही आकर बस गए थे. इरा सिंघल के दादा इंजीनियर थे और उनकी अपनी कोलमाइन्स भी थीं लेकिन 1971 में जब देश में कोयले का राष्ट्रीयकरण हुआ तो मेरठ का ये सिंघल परिवार मुश्किलों में जा फंसा था.
इरा सिंघल के पिता राजेंद्र सिंघल बताते हैं कि मेरा स्कूलिंग मेरठ में कुछ हुआ है. आगरा हुआ थोड़ा सा झारखंड में भी हुआ है. और कलकत्ता में हुआ है. जॉब का मेरा टेंपरा मेंट नहीं था और कोलियरी हमारी 71 में इंदिरा की कृपा से नेशनालाइज्ड हो गई. सड़क पर आ गए थे. तभी मैंने इंजीनियरिंग की थी. तो मेरा टेंपरामेंट तो था नहीं वैसा. मैं तो सड़क पर आ गया. तो प्रोफेशन में आ गया. मैकेनिकल में किया था. बस ऐसे ही चलता रहा फिर.
इरा सिंघल के चाचा अनिल सिंघल बताते हैं कि वो बच्ची शुरु से ही बहुत चंचल थी. शुरु से ही बहुत शरारती थी जब पैदा हुई थी तो हाथ पैर बहुत चलाती थी. रोती थी तो ऐसी रोती थी कि बस पूरा मोहल्ला सुन ले इतनी तेज आवाज थी उस छोटी सी की. और शुरु से चंचल थी. पहले उसने संजीवनी स्कूल में पढाई की नर्सरी वहां से करी उसने.
मेरठ में भरे – पूरे सिंघल परिवार के बीच इरा ने अपनी जिंदगी के शुरुआती 12-13 साल गुजारे हैं. चाचा, चाची और भाई – बहनों के बीच इरा का बचपन यहां मौज – मस्ती करते हुए गुजरा था लेकिन साथ ही साथ मुश्किलों ने भी उसकी जिंदगी में दस्तक देनी शुरु कर दी थी. इरा की चाची का कहना है कि शुरुआत में वो बेहद कम बोल पाती थी क्योंकि उनके मुंह में तालू नहीं था और जब वो तीन साल की थी तब दिल्ली के आल इंडिया मेडिकल साइंसेस यानी एम्स में उनका ऑपरेशन करवाया गया था और फिर इसके बाद से ही पूरा सिंघल परिवार इरा को लेकर संवेदनशील हो गया था.
इरा सिंघल की चाची सुधा सिंघल बताती हैं कि ये तो दिक्कत पांच छह महीने के बाद ही हम लोगों को पता चल ही गई थी उसकी. लेकिन हमारी भाभी जी और भाई साहब की पेसेंस. वो गजब की थी. मतलब खाना एक रोटी खिलाना उसको एक या डेढ़ घंटे का काम था. कितनी पेसेंश से करती थी वो काम शायद मैं नहीं कर सकती थी जितना भाभी जी ने किया. और परिवार का साथ रहता था मतलब जिस समय वो खाना खिला रही है तो कोई डिसटर्ब ना करे. उसके बाद भी कितने बार बाथरुम में गए और उसको थूका और फ्लश कर दिया. मम्मी को पता ना लगे खाना अंदर नहीं जाना चाहिए. मतलब खाने में तो ये समझिए बिल्कुल बहुत ही लिमिटेड खाती थी.
इरा सिंघल जब कुछ बड़ी हुई तो उनका दाखिला मेरठ के सोफिया कॉन्वेंट स्कूल में करवा दिया गया था. लेकिन शिक्षा के इस पहले पड़ाव पर भी मुसीबतों ने इरा का पीछा नहीं छोड़ा. तालू का ऑपरेशन होने के बावजूद अभी भी वो साफ- साफ बोल नहीं पाती थी और यही वजह थी कि उस वक्त स्कूल प्रशासन ने उन्हें एडमीशन देने से इंकार कर दिया था.
इरा सिंघल के पिता राजेंद्र सिंघल बताते हैं कि  ये जब पैदा हुई तो इसके क्लैफ पैलेट नहीं था. तो इसलिए सोफिया में इसको रिजेक्ट कर दिया गया था कि नेजल टोन है. तो हमने कहा कि इसका तो आपरेशन कराना है ठीक होना है. छह साल की जब होगी तब करेंगे डाक्टर ने कहा है कि पहले नहीं करेगें. एम्स में इलाज चल रहा है. फिर आपरेशन कराया ठीक हो गई. जब ये आठ नौ साल की हुई. तब डिफार्मेटी डेवलप होनी शुरु हुई. उससे पहले नहीं. उससे पहले एवरीथिंग वाज प्योर नार्मल.
तालू के इलाज के बीच बचपन के दिन तो गुजर गए लेकिन इरा की जिंदगी में एक नई मुसीबत ने उस वक्त दस्तक दी जब वो करीब 9 साल की थी. इरा को स्कोलियोसिस नाम की बीमारी ने घेर लिया था जो स्पाइन यानी रीढ़ से जुडी एक बीमारी है. क्या है स्कोलियोसिस? दरअसल स्पाइन की हड्डी में अगर कोई डिफॉरमेशन हो जाए यानी वो पूरी तरह से विकसित ना हो पाए या फिर स्पाइन टेढी हो जाए तो इस बीमारी को स्कोलियोसिस कहते हैं. आमतौर पर शऱीर के पिछले हिस्से में रीढ़ की हड्डी सीधी होती है लेकिन इस बीमारी में ये एस की तरह आकार ले लेती है और इसकी वजह से मरीज की हाईट कम हो जाती है. स्कोलियोसिस की ये बीमारी वैसे तो जन्मजात होती है लेकिन ये टीबी इनफेक्शन की वजह से भी होती है आम तौर पर टीनेजर्स में स्कोलियोसिस के लक्षण दिखने लगते हैं, खास तौर पर 9 से 15 साल की उम्र में ही इसका पता चल जाता है. इरा सिंघल में भी इसी उम्र में आकर इस बीमारी के लक्षण दिखने लगे थे. जिसकी वजह से वो 60 फीसदी तक डिसएबल हो गईं हैं.
इरा सिंघल के पिता राजेंद्र सिंघल बताते हैं कि जितना ट्रीटमेंट कर सकते थे अपनी समझ थे हर जगह कराया. चाहे एलोपैथी हो, आर्युर्वेदिक हो या यूनानी हो. लेकिन हम नहीं सक्सेस कर पाए या सहीं आदमी पर नहीं पहुंचे. या भाग्य में नहीं था या ट्रीटमेंट नहीं था. लेकिन हमने इसको ये कभी नहीं बताया कि यू हैव समथिंग एबनार्मल. यू आर नाट फिट फार समथिंग. बचपन से मैने ये लिया कि वो अपने दम पर ग्रो करे. और उसके अंदर कोई इनफीरियटी कॉम्पलेक्स नहीं आना चाहिए. उसको मैने कभी हैंडीकैप ट्रीट नहीं किया. हमेशा उसको एक नार्मल ह्यूमन की तरह पलने दिया. और कभी कहीं उसको प्रोटेक्ट नहीं किया. बच्चों को अगर शील्ड दी जाए या प्रोटेक्ट किया जाए तो वो बढ नहीं पाते. वो कवर में रहना सीख जाते हैं. मैने कवर में नहीं रखा. मैन कहा जाओं अपने आप अपनी लड़ाई लड़ो. तो दैडट वाज द मेन इश्यू.
मेरठ के थापा नगर मोहल्ले से लेकर सोफिया कॉन्वेंट स्कूल तक इरा सिंघल बच्चों के बीच एक चर्चित चेहरा थीं. बचपन में वो पढ़ने में तेज थी तो वहीं स्पोर्ट्स में भी किसी से पीछे नहीं रहती थी. बचपन के उन दिनों में इरा सिंघल को सजना और सजाना दोनों ही बेहद पसंद थे. मेकअप की शौकीन इरा को शुरु से ही डार्क मेकअप करना पसंद रहा है वो हाई हिल भी शुरु से ही खूब पहनती रही है. मेरठ के उन दिनों में वो अपने मोहल्ले के बच्चों को जहां डांस सिखाती वहीं अपने कजिन पर जमकर रौब भी जमाती थीं. 
इरा सिंघल की कजिन गीतिका अग्रवाल बताती हैं कि लिपिस्टिक लगाना हुआ. बिंदी लगाना हुआ. बाल तो छोटे ही थे हमारे बचपन में. हेयर स्टाइल तो बनाना नहीं आता था लेकिन यही होता था कि मेरे लंबे होते थे दीदी के छोटे होते थे. दीदी मेरे पे हेयर स्टाइल ट्राय कर रही है ये लगाओ ये लगाओं ऐसे तैयार हो फुल मेकअप वैसे ही हो जाता था हमारा एक दूसरे का करते करते. किसी की मम्मी की साड़ी निकाली उसे डबल फोल्ड किया उसे पहन लिया. जिसमें भी हमको फन मिलता था वो मस्ती हम खूब मारते थे.
इरा सिंघल बताती हैं कि मेरे शौक ज्यादा बदले नहीं है. मुझे उस टाइम पर भी कीताबे पढ़ने का शौक था. खासकर फिक्शन. स्कूल की किताबे मैंने कभी खास नहीं पढ़ी है. मेरे मां-बाप को इस बात का बहुत गम भी है. उन्हें लगता था कि तुम्हे स्कूल में टॉप करना चाहिए था. वो तो कभी नहीं हो पाया. मुझे तब से किताबों का शौक है मुझे याद है मैं चोरी छिपे लाती थी और मुझे बहुत डांट पड़ती थी जब उन्हें पता चल जाता था. दूसरा मुझे कूकिंग का शौक है. मुझे ट्रैवलिंग का है. मैं डांस बहुत छोटी उम्र से करती आ रही हूं. मैंने काफी स्टेज परफॉरमेंस भी किया है. मुझे थीएटर बहुत इंटरस्टिंग लगता था मैं थीएटर में बहुत काम किया है.
इरा सिंघल की स्कूल टीचर संध्या मित्तल बताती हैं कि फिजिकली फिट ना होने के बावजूद भी वो बहुत ही मेहनती और पाजिटिव एटीट्यूड की लडकी थी. और इसी कारण आज भी हमें उसकी शक्ल याद है. और उसकी पर्सनालिटी के थोडे बहुत ट्रेड भी हमे याद है. कि उसने कभी हिम्मत नहीं हारी औऱ वो हमेशा अपने काम में परफेक्ट रहती थी. और स्कूल के दिनों में कभी इरेगुलर नहीं रही हमेशा पंक्चुलअल रही. और स्कूल में आकर उसने हमेशा बच्चों को एक एक्जांपल दिया. कि फिजिकल डिसएबिलिटी कुछ नहीं है अगर उम्मीद है उमंग है तो आगे बढने से कोई रोक नहीं सकता. ये उसके मन का विश्वास था जिसके लिए आज हमें गर्व भी हो रहा है. औऱ शायद यही उसके मन का विश्वास था जो आज उसे इतने ऊंचे मुकाम तक लाया है.
इरा सिंघल के चाचा अनिल सिंघल बताते हैं कि जब तक मेरठ में रही बहुत पापुलर रही स्कूल में भी और सबसे बडी बात कि फिजिकल वीक होने के बावजूद भी उस लड़की में बिलकुल भी इफिरिटी कॉम्पेलेक्स नहीं था. बहुत कान्फीडेंट थी अपने में. और हर जगह बोल्डली बात करती थी दबती नहीं थी किसी से भी. स्कूल जाती थी वहां भी उसकी बहुत फ्रैन्ड्स थी.
मेरठ के सोफिया कॉन्वेंट स्कूल में इरा सिंघल ने आठवीं क्लास तक पढ़ाई की है. सिक्स्थ और सेवंथ क्लास में इरा सिंघल की इंग्लिश टीचर रही संध्या मित्तल को आज भी याद है कि कद कम होने की वजह से हमेशा लाइन में सबसे आगे खड़ी रहने वाली इरा पढने- लिखने में बेहद होशियार थी. अपनी क्लास में पोजीशन होल्डर रही इरा स्कूल में भी हमेशा टॉप रेंक में रहती थी. इरा के साथ सोफिया स्कूल में ही पढ़ी उनकी कजिन गीतिका अग्रवाल बताती हैं कि शारीरिक कमजोरी के बावजूद वो स्कूल में रेस जैसी गतिविधियों में भी बढ़- चढ कर हिस्सा लिया करती थीं. 
इरा सिंघल की कजिन गीतिका अग्रवाल बताती हैं कि वह एक्टिव अभी भी है और स्कूल टाइम में भी होती थी. जैसे डिबेट पार्ट हुआ. ऐसे राइटिंग हुआ, पेंटिग ड्राइंग हुआ. फिजिकल में अगर हम देखे तो रेस में भी लिया है पार्ट उन्होंने. मतलब ऐसा कुछ भी नहीं होता था जो वो नहीं कर सकती थीं. सोफिया में जब हम लोगों के बैग काफी भारी होते थे. दो दो मंजिल चढ कर जाना होता है ऊपर. वो बैग को लेकर आसानी से चढ़ जाती थी. मै रहती थी साथ में वो मुझे कह सकती थी. कभी ऐसा नहीं होता था वो हमेशा अपना कैरी करके खुद ही लेकर जाती थी. तो उन्होंने कभी अपने को डीमारिलाइज नहीं किया कि मै यह चीज नहीं कर सकती हूं. तो कभी भी किसी भी चीज में वो कभी पीछे नहीं रही.
इरा सिंघल की मां बताती हैं कि उसको डांसिंग का शौक था. एक्टिंग का शौक था. एक बार लाइंस क्लब में एक्टिंग थी कि वो कोई भिखारन बनीं तो इसका उसी टाइम दांत टूट गया. प्ले के बीच में ही तो इसने शो किया कि देखो मुझको ऐसी रोटी देते हैं. नहीं भिखारन नहीं बनी वो बनी जमादार. तो इसने कहा कि देखो मुझको ऐसी रुखी-सूखी रोटी देते है कि दांत भी टूट गया. तो उसे पुरस्कार मिल गया. मतलब ये इतनी डायमेंशनल थी कि इसने स्ट्राइक किया कि मैं ये डायलॉग बोलूंगी. उस वक्त वह महज 6 या 7 साल की थी. एक स्कूल में सोफिया स्कूल में इसने निबंध लिखे.
साल 1995 इरा सिंघल की जिंदगी में उस वक़्त टर्निंग प्वाइंट बना, जब उनके पिता राजेंद्र सिंघल ने मेरठ छोड़कर दिल्ली में बसने का फैसला किया. दिल्ली में इरा सिंघल का एडमिशन लॉरेन्टों कॉन्वेंट स्कूल में करा दिया गया था. नए स्कूल में पढ़ाई के अलग तौर – तरीकों ने रिया सिंघल के जहन के दरवाजे और खोल कर रख दिए. लॉरेंटो कॉन्वेट से उन्होंने दसवीं क्लास की पढ़ाई पूरी की. वो इसी स्कूल में आगे पढ़कर डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन जिंदगी के इस मुकाम पर आकर पहली बार इरा को अपने कदमों पर ब्रेक लगाने पड़े. जिन माता – पिता ने कभी किसी बात के लिए उन्हें रोका – टोका नहीं उन्हीं पिता ने उनके डॉक्टरी का पेशा अपनाने को लेकर अपना आखिरी फैसला सुना दिया और इस फैसले के साथ ही इरा सिंघल का सुनहरा सपना भी टूटकर बिखर गया. 
इरा सिंघल के पिता राजेंद्र सिंघल बताते हैं कि जब इसने लॉरिटो में 10वीं किया तो लॉरिटो में 11वीं में बायो सेक्शन तो था. लेकिन वहां कंप्यूटर साइंस नहीं था. ये तो खुद डॉक्टर ही बनना चाहती थी तो ये तो वहां खुश थी. लेकिन मुझे लगा पार्टिकुलर उस जगह जरुर मैंने रोका उसे. कि बेटे तुम्हारी फिजिक जो है वो डाक्टरी के लिए फिट नहीं है पार्टिकुलरली फार द सर्जन. जिसे मैं आज भी सही मानता हूं. ये मेरे से कई सालों तक रूठी रही. मैंने कहा कि बेटे तुम्हे इंजीनियर बनना है डाक्टर नहीं बनना है. तो मैंने इसको फिर आर्मी पब्लिक स्कूल धौला कुआ में एडमिशन कराया. वहां से इसने 11वीं, 12वीं, वहां से करी है इसने.
इऱा सिंघल की मां बताती हैं कि वो डॉक्टर बनना चाहती थी. गेम में जो टायज भी होते थे. वो उसी तरह के उसी से खेलना पसंद करती थी. जो उसका शौक शायद पूरा नहीं हो पाया. क्योंकि उसके पिता को लगा कि ये फीजिकली इतनी स्ट्रोंग नहीं है जो ये सर्जन बन सके. फीजिशियन तो बन जाएगी. लेकिन डायसेक्शनस नहीं कर पाएगी. तो हो सकता है कि वो फीजिशियन भी बहुत अच्छी न बन पाए. उसका पैशन था ये लेकिन लो पूरा नहीं हो पाया.
पिता के कहने पर इरा ने अपने एक सपने को पीछे छोड़ दिया. लेकिन आईएएस बनने का दूसरा सपना अभी भी उनकी आंखों में पल रहा था. लिहाजा धौला कुआं के इसी आर्मी पब्लिक स्कूल से उन्होंने फिजिक्स, केमेस्ट्री और गणित विषयों के साथ बारहवीं की परीक्षा पास कर ली. अब आगे इरा को इंजीनियर बनना था लिहाजा उनका अगला पड़ाव द्वारका का ये नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनोलॉजी था. साल 2006 में इरा इंजीनियर भी बनी लेकिन बेमन से.
इरा सिंघल बताती हैं कि मैंने नहीं किया. मुझे फोर्स किया गया था. काफी टाइम तक तो मैंने इंजीनियरिंग बहुत अंडर प्रोटेस्ट की है. इंजीनियरिंग एक रात पढ़ पढ़ कर पास हुई. बाकी के इंजीनियरस का भी शायद हमारे देश में यही हाल होता है. मैंने कभी माइंड नहीं बनाया कभी इंजीनियरिंग करने का इसलिए जबसे मुझे मौका मिला मैंने फटाफट इंजीनियरिंग की राह छोड़ी और मैंने इंजीनियरिंग में भी 4 साल तक मैनेजमेंट वाले काम किए थे उसके बाद लोजीकल स्टेप था कि एमबीए कर लेते हैं क्योंकि सीविल्स करने के लिए एक बहुत बड़ा रिस्क था. अगर मैं डायरेक्ट इंजीनियरिंग के बाद आता तो रिस्क था कि अगर मैं नहीं पास हुई तो मैं न इंजीनियरिंग की जॉब पर वापस जा सकती हूं न सिविल्स की लाइन में होती. थोड़ा से करियर रिस्क था इसलिए और एमबीए मुझे पसंद भी बहुत था.
इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद इरा सिंघल ने एमबीए का पड़ाव भी पार कर लिया. आप शायद ये सुनकर चौंक जाएं कि किताबों की इस अलमारी में कोर्स या आईएएस की तैयारी के लिए स्टडी मटैरियल नहीं रखा है बल्कि ये अलमारी उन सैकड़ों नॉवेल से भरी पड़ी है जिन्हें पढ़ने की इरा शौकीन रही हैं. वो खुद भी बताती हैं कि अब तक वो तकरीबन डेढ हजार नॉवेल पढ़ चुकी हैं. खास बात ये भी है कि शारीरिक कमियों के बावजूद उन्होंने अपनी जिंदगी को घर की चार दीवारों में ही कैद नहीं रखा है. इरा की भाभी अंजु गोयल का कहना है कि उनकी एंडलैस एनर्जी उनके करीबियों को भी हैरान कर देती है.
इरा सिंघल की भाभी अंजु गोयल बताती हैं कि उसको म्यूजिक सुनना बहुत पसंद है. उसको ट्रैवलिंग बहुत पसंद है. हमारे साथ तो कितनी बार चलो भाभी वहां चलते हैं. कहीं का भी प्रोग्राम सेट अप कर दिया. चलो चलते हैं घूमने के लिए. निकल गए. इतनी अच्छी तरह से डीजाइन करती है प्रोग्राम को कि हमें कोई प्रोब्लम ही नहीं होती कभी भी. अपने फ्रेंड्स के साथ फ्रांस और इटली अकेले घूमने निकल गई तो ये कभी लगा नहीं. आप सोचिए आईएएस में टॉप करने का लक्ष्य ही शुरु से रहा हो कि मुझे लाइफ में कुछ करना है और फिर भी वो लाइफ को पूरा जी रहा है ये नहीं कि अपने आप को एक कमरे में बंद करके रख लिया.
जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाली इरा सिंघल ने अपनी शारीरिक कमियों को अपने जोश के बूते जीत लिया है. देश – विदेश में सैर सपाटा करने वाली इरा शुरु से ट्रैवलिंग की भी बेहद शौकीन रही हैं. दिलचस्प बात ये है कि उनके माता – पिता ने भी उनके इस शौक में कभी रोढ़ा नहीं अटकाया. यही वजह है कि ना सिर्फ वो अपने परिवार के साथ देश – विदेश में घूमती रही हैं बल्कि इजिप्ट से लेकर फ्रांस और इटली तक कई देशों की वो अकेले यात्राएं भी कर चुकी है.
इरा सिंघल बताती हैं कि मैं टारगेट तो बनाती हूं लेकिन मैं उसे अपनी जिंदगी नहीं बनाती हूं मतलब मैं उससे अपनी पर्सनेलिटी औऱ अपने जीवन को डिफाईन नहीं करती हूं. मैंने शायद बहुत पहले ये बात रियलाइज की थी कि जब आप मर रहे होते हो तब आप ये नहीं देखते हो पीछे बैठकर की मैंने इतना सारा काम किया. ऑफिस में इतने सारे घंटे बिताए. आप तब ये देखते हो कि मैंने उस इंसान के साथ इतना इनजॉय किया. आप लोगों के साथ बीते हुए मौके याद रखते हो. आप कभी भी अपना पुराना टाईम वापस देखेंगे तो सबसे ज्यादा मजेदार टाइम वो ही होते है. जो आपने लोगों के साथ बिताए होते हैं. जब कुछ नया किया होता है. तो मैं ये मानती हूं काम बहुत जरुरी है क्योंकि मेरा सैटिस्फेक्शन इस बात से आएगा कि मैंने दुनिया में कई लोगों की लाइफ बेटर करी तो इसी लिए मेरे लिए टारगेट. ये जॉब इंपोरटेंट है.
कंप्यूटर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करने के बाद इरा सिंघल ने एमबीए में एडमिशन के लिए एंट्रेस एक्जाम दिए. एमबीए में एडमिशन के लिए उन्होंने जो कैट यानी कॉमन एंट्रेस एक्जाम दिया उसमें भी उन्होंने सौ में से 99.6 फीसदी नंबर हासिल किए. देश के सभी इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट यानी आईआईएम संस्थानों की लिस्ट में उनका नाम था लेकिन इरा ने आईआईएम अहमदाबाद को चुना और फिर उसे भी छोड़ दिया.
दिल्ली यूनीवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से 2008 में फाइनेंस और मार्केटिंग में एबीए की डिग्री हासिल करने के बाद इरा सिंघल ने कैडबरी कंपनी में नौकरी कर ली थी. नौकरी के दौरान अपने काम से उन्होंने वहां भी लोगों का दिल जीत लिया था. इरा के पिता राजेंद्र सिंघल बताते हैं कि कैसे उन्होंने बरसों से चले आ रहे कंपनी के घाटे को करोडों के मुनाफे में तब्दील कर दिया था.
इरा सिंघल के पिता राजेंद्र सिंघल बताते हैं कि वहां इसने जो काम किया उसके वो बहुत दीवाने हो गए. जिस सेक्शन में लॉस जा रहा था सिंस इनसेप्शन आफ 1956. उसमें इसने ढाई करोड़ का प्राफिट करके दिखा दिया. फिर एक अकाउंटिग की उसने एक पकड़ी . जब आडिट का इसने पकड़ा तो सीईओ ने सीएफओ से कहा सीएफओ ने पूछा हू इज शी. कामर्स और सीए तो ये बोली नो आईएम इंजीनियर. आई हैव डन फायनेंस इन मार्केंटिग एंड फायनेंस. एमबीए बोले तुम्हे क्या पता. बोली मुझे ऐसा लग रहा है आप चैक कर लीजिए. नो नो नो इट्स ओके. सीओ टोल्ड इट्स बैटर प्लीज चैक. सीईओ ने तो ये भी कहा था कि तुम इस लड़की को अपने साथ बैठाओ चैक कर लो और इसका ब्रेन वॉश करो. ताकि इसको अकल आ जाए कि क्या गलत बोल रही है. लेकिन हुआ उल्टा. तीन दिन बाद ही इज एडमिटेड यस शी इज राइट. वहां जो जो मैनेजर छोड़ कर गया इसे देते गए. ये आफिशियल एक पोस्ट पर थी लेकिन छह पोस्ट इसके पास थी. शी वाज हैंडलिंग कॉरपोरेट मार्केटिंग, स्ट्रेटेजी मैनेजर थी ही ये.
कैडबरी कंपनी में इरा सिंघल ने करीब एक साल तक काम किया था. कंपनी में उनका अच्छा ओहदा और करीब बीस लाख रुपये का पैकेज भी थी. जाहिर है अच्छी नौकरी और अच्छी सैलरी के अलावा भविष्य में उनके तरक्की करने की उम्मीदें भी ज्यादा थी लेकिन इरा सिंघल ने अपने दूसरे सपने की खातिर एक दिन अचानक कैडबरी छोड़ने का फैसला कर लिया.
कैडबरी कंपनी छोड़ने के साथ ही इरा ने मुंबई भी छोड़ दिया और वो वापस दिल्ली वापस लौट आई थी. वो दिल्ली, जहां उनका सपना इंतजार कर रहा था. दरअसल डॉक्टर ना बन सकी इरा आईएएस बनने का अपना दूसरा ख्वाब पूरा करना चाहती थी. यही वजह है कि कंपनी के लंबी छुट्टी देने और आईएएस में कामयाब ना होने पर वापस नौकरी देने के कैडबरी कंपनी के प्रस्ताव को भी उन्होंने नकार दिया था.
आईएएस टॉपर इरा सिंघल बताती हैं कि मुझे जॉब वापिस मिल जाएगा. मेरी परफॉरमेंस अच्छी थी और दूसरी चीज तो ये थी कि मुझे पता था कि मैंने आजतक तो पढ़ाई की नहीं थी. मैं अपने आपको मौका नहीं दे रही थी मैं कभी लाइफ में सिंसियर रही ही नहीं थी इससे पहले तो मैंने सोचा कि इस बार भी कोई गारंटी नहीं है तो मैं अपने आप को मौका नहीं देना चाहती थी कि मैं वापिस ये काम करूं तो उस वजह से मैंने प्लस मुझे लगा कि कंपनी के साथ भी फेयर नहीं होगा कि मैं उन्हें अटकाए रखूं और जो वो मुझे सैलरी दे रहे है मैं वो फालतू में सैलरी लू जो मैं डिजर्व नहीं करती थी क्योंकि मैं अपनी प्रॉयरिटी परशु कर रही हूं तो मैं उनको क्यों नुकसान दूं तो इसलिए मैंने रीफ्यूज कर दिया था कि सर मुझे नहीं चाहिए.
साल 2010 में पहली बार आईएएस अफसर बनने के लक्ष्य के साथ इरा सिंघल अपनी पूरी तैयारी के साथ संघ लोक सेवा आयोग के इम्तिहान बैठी. हांलाकि इससे पहले भी वो दो बार सिविल सर्विसेज की परीक्षा दे चुकी थी लेकिन इस बार उनकी तैयारी रंग लाई. साल 2010 में इरा ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा में 815 वां रैंक हासिल किया था बावजूद इसके सरकार ने उन्हें नौकरी के लायक नहीं माना और इसीलिए अगले चार सालों तक इरा सिंघल को कानूनी लड़ाई में कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा. सिविल सर्विसेज परीक्षा का ये गणित.
यूपीएससी यानी संघ लोक सेवा आयोग देश में करीब 30 अहम सरकारी नौकरियों के लिए उम्मीदवारों का चयन करता है. प्रतिष्ठित प्रशासनिक सेवाओं में प्रतियोगियों के चयन के लिए यूपीएससी हर साल देश भर में सिविल सर्विसेज परीक्षा आयोजित करता है. ये परीक्षा प्रारंभिक, मुख्य और इंटरव्यू के तीन चरणों में ली जाती है और फिर सफल प्रतियोगियों को रैकिंग के हिसाब से प्रशासनिक सेवाओं में भर्ती किया जाता है. जैसे पहले टॉप 100 लोगों को इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस (आईएएस), उसके बाद 100 लोगों को इंडियन पोलिस सर्विसेस (आईपीएस) और तीसरे 100 लोगों को इंडियन फॉरेन सर्विसेस (आईएफएस) में भर्ती किया जाता है. इसके बाद अलायड सेवा शुरु होती है. जिसमें इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज (आईआरएस), इंडियन इंफार्मेंशन सर्विसेस (आईएफएस) से लेकर रेलवे सेवा, डिफेंस और आखिर में सीएससी सेवा में सफल उम्मीदवारों का चयन किया जाता है.  हर साल 1 हजार से ज्यादा पद सिविल सर्विसेज के जरिए भरे जाते हैं.
कैडबरी की नौकरी छोड़ने के बाद दिल्ली लौटी इरा सिंघल ने साल 2010 में ही सिविल सर्विसेस परीक्षा में 815 वा रैंक हासिल कर लिया था और इस हिसाब से उनका भारतीय रेवेन्यू सर्विसेस यानी आईआरएस में चयन भी हो गया था बावजूद इसके इरा के 60 फीसदी तक हैंडीकैप्ड होने का हवाला देकर सरकार ने उन्हें इस नौकरी के लायक नहीं माना था. लेकिन अपने साथ हुए इस बर्ताव के बाद भी इरा ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी नौकरी को लेकर उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल में कानून का दरवाजा खटखटाया था. आप भी सुनिए इरा का केस लड़ने वाली वकील ज्योति सिंह की जुबानी उनके संघर्ष की ये कहानी.
इरा सिंघल की वकील ज्योति सिंह बताती हैं कि जब मेरिट लिस्ट निकली थी मेन एक्जम के लिए इसने क्लीयर किया उसके बाद इसका पर्सनेलीटी टेस्ट तक की स्टेज तक क्लीयर हो गया, और मेरिट लिस्ट में नाम आ गया. ये सोचती रही कि अभी मुझे नतीजों के हिसाब सेबुलाया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिर इसको पता चला कि शायद इसको ये लोग सेलेक्ट करने ही नहीं वाले है तो इसने फिर मिनिस्ट्रीज को जो कंसर्नड थी उनको चिठ्ठी लिखनी शुरु की. खुश बात ये थी हमारे लिए कि एक चिठ्ठी आई भी इसको डीओपीटी से जिसमें उन्होंने कहा कि इसका मेडिकल एक्सामिनेशन कराकर देखा जाए. हो सकता है कि अपर लिम्स इफेक्ट होने के बाद भी ये फंक्शनली IRS में काम कर सके. इसका सफदरजंग में एग्जामिनेशन भी हुआ. वहां पर मेडिकल रिपोर्ट आई कि ये 10 किलो तक वेट भी उठा सकती है तो ये फंक्शनली इनटाइटल्ड है IRS में जाने के लिए. फिर ये चिट्ठी दूसरी मंत्रालय में गई. ये भी एक लंबी लड़ाई चलती रही. एक मंत्रालय ने कहा कि नहीं हम नहीं रख सकते हैं. दूसरी ने कहा कि नहीं नोटिफिकेशन नहीं है इसलिए नहीं रख सकते है . जब ये सबकुछ हो गया तो लास्ट में समय निकल चुका था. सारी वेकेंसीज निकल चुकी थी. तो सबकुछ होने के बाद सबसे दुभाग्य बात ये रही कि अब वो मेडिकली भी ठीक है. सबकुछ ठीक है बट अब वेकेंसी नहीं रही. इस स्टेज पर जाकर हमारे पास और कोई चारा नहीं था हमने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
इरा सिंघल ने करीब चार साल तक सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिरकार साल 2014 में फैसला उनके पक्ष में आया. कोर्ट ने सरकार से कहा कि इरा सिंघल को उनकी रैंक के हिसाब से नौकरी दी जाए. जिसके बाद उन्हें आईआरएस की ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद भी भेजा गया लेकिन अपने संघर्ष के इन पांच सालों के दरमियान इरा सिंघल ने साल 2011 और 2013 में दो बार सिविल सर्विसेज परीक्षा फिर से पास करने में कामयाबी भी हासिल कर ली थी. इरा की कामयाबी का ये सिलसिला यहीं नहीं थमा बल्कि साल 2015 में उन्होंने देश की इस सबसे बड़ी और कठिन परीक्षा में टॉप कर सबको हैरत में डाल दिया है.
इऱा सिंघल बताती हैं कि मैं जो भी हूं ये उनका क्रेडिट है. क्योंकि अपने बच्चों को बिना किसी कम्प्लेक्स के बिना किसी गलत एटिट्यूड के पालना अपने बच्चों में कोई नेगेटिव फीलिंग न आने देना. ये बहुत बड़ा अचिवमेंट होता है. हम थोड़ी थोड़ी गलतियां करते रहते है लेकिन मेरे पेरेंट्स ने बहुत कोशिश की है कि वो कोई न कर पाए एंड उन्होंने मुझे उतना ही स्ट्रोग बनाया है. जितना कोई भी एक न्यूट्रल पेरेंट चाहे वो लड़के का हो या लड़की का उसे बनाना चाहिए था. जितना कि कोई भी बना सकता है तो मेरा जो भी सारा क्रेडिट है सारा मेरे पेरेंट्स को जाता है. और शायद उसी वजह से मैं टॉप होने की बात नहीं करती मैं सिर्फ पास होने की बात करती हूं. क्योंकि इस एग्जाम में बहुत मेंटल और इमोशनल एनर्जी लगती है . मेन प्रोब्लम होती है कि आपको अपने आपको मोटिवेटिड रखना पड़ता है. क्योंकि साल लग जाता है और आपके आसपास के लोग कुछ अचीव कर चुके होते हैं आप पीछे ही बैठे हैं अभी भी जिस मुकाम पर आपने छोड़ा था एक नार्मल ट्रेक को आपके दोस्त उसमें आगे बढ़ गए है और आप वहीं पर रुके हुए है एंड काफी साल लग रहे हैं तो उस टाइम पर आपने आपको मोटिवेटिड रखना ये सिर्फ एक बहुत पॉजीटिव एटिट्यूड से ही आ सकता है.
मजबूत हौसले और बुलंद इरादों के सहारे इरा सिंघल ने कामयाबी के आसमान में बेहद ऊंची उड़ान भऱी है. मुश्किल जिंदगी और विपरीत हालात के बीच उन्होनें अपने मन की शक्ति के दम पर अपने सपने को सच कर दिखाया है और इसीलिए इरा की जिंदगी एक सबक हैं  उन लोगों के लिए जो जिंदगी में कुछ कर गुजरने का सपना अपनी आंखों में सजाते हैं.

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