Tuesday, July 25, 2017

एक ऐसा विद्यालय जहाँ शिक्षक नियुक्त है, सैलेरी भी टाइम पर आती है, परन्तु विद्यार्थी एक नहीं है

दिल्ली, लोकहित एक्सप्रेस, (रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया) । सरकारी स्‍कूलों के हालात से तो हम सभी वाकिफ हैं कि स्कूल का भवन और विद्यार्थी तो होते है परन्तु शिक्षक नहीं होते, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान के सीकर जिले में कांवट कस्बे के प्रतापपुरा गांव में एक ऐसा स्‍कूल भी है, जहां पढ़ाने के लिए टीचर्स तो हैं लेकिन पढ़ने वाला कोई नहीं। प्रतिमाह करीब एक लाख से ज्यादा रुपए की पगार लेने वाले ये चार शिक्षक पेड़ पौधों में पानी डालकर और अपना टाइमपास करके वापस अपने घर लौट जाते हैं । राजस्थान का यह स्‍कूल बाकी स्‍कूलों से बहुत अलग है।
राजस्थान के सीकर जिले में कांवट कस्बे के प्रतापपुरा गांव में शिक्षा विभाग ने संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अलग से संस्कृत स्कूल 1998 में खोला गया था । उस समय इस स्कूल में पास के गांवों से भी बच्‍चे पढ़ने आते थे। 2005 में, बच्‍चों की संख्‍या 55 थी और वर्ष 2014 में स्कूल क्रमोन्न्त हुआ, परन्तु उसके बाद कम होती चली गई। आज आलम यह है कि इस स्कूल में हमेशा शांति फैली होती है और क्‍लासरूम में सन्‍नाटा पसरा रहता है । वहीं प्‍लेग्राउंड सूना पड़ा रहता है। जिसकी मुख्य वजह सिर्फ बच्चो का स्कूल न आना है।
यह स्‍कूल ज्‍यादा बड़ा तो नहीं है पर इस स्कूल के बिल्डिंग में छह क्लासरूम है। इस स्कूल में शिक्षा विभाग ने एक प्रधानाध्यापक और तीन शिक्षकों को नियुक्त कर रखा है, जिन्हे सरकार लाखों रुपयों की पगार देती हैं जो सुबह 8 बजे ही स्‍कूल में आ जाते हैं। स्‍टूडेंट न होने की वजह से ये टीचर दिनभर बोर होते रहते हैं। टीचर्स की सैलेरी तो टाइम पर आती है लेकिन वे अपनी जॉब से खुश नहीं हैं। शिक्षकों का कहना हैं कि वे पेड़ पौधों में पानी डालकर, झाड़ू निकालकर सरकारी कुर्सियों पर बैठकर ही वापस अपने घर चले जातें हैं । वहीं जब हम अपने घर जा रहे होते हैं तब गांव के आसपास के लोग भी स्कूल में आने वाले शिक्षकों को हीन भावना से देखकर उन पर टिप्पणियां करने से नहीं चूकते हैं ।
इस पुरे मामले के बारे में प्रधानाध्यापक सांवरमल द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को प्रत्येक महीने रिपोर्ट भेजकर अवगत करवाया जाता है । अध्यापकों की मानें तो इस गांव की आबादी भी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 300 के लगभग है ।

विद्यालय को शिक्षा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिको का मानना है की संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति दुनिया की कोई भी भाषा बोल सकता है। संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा विभाग ने अलग से संस्कृत स्कूल तो खोल दिए लेकिन सरकार की लापरवाही की वजह से कभी इन स्कूलों में व्यवस्थाओं की कभी सुध तक नहीं ली गयी।

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