मेरे प्रिय
देशवासियों, शुभ संध्या:
साथियों, लगातार मिल रही धमकियों और उपेक्षापूर्ण बयानों को देखते हुए, अलबामा विश्वविद्यालय में आज दोपहर उत्तरी ज़िला अलबामा की संयुक्त राज्य
ज़िला-अदालत के स्पष्ट और अंतिम आदेश के क्रियान्वयन के तहत अलबामा राष्ट्रीय
सुरक्षागार्डों की तैनाती अपरिहार्य हो चुकी है. अदालत का यह आदेश दो योग्य और
युवा अलबामा निवासियों के प्रवेश के पक्ष में था, जिनका जन्म संयोगवश
नीग्रो परिवार में हुआ है.
विश्वविद्यालय
में उनका प्रवेश जिस शांतिपूर्ण ढंग से हुआ वो अलबामा विश्वविद्यालय के छात्रों के
उत्तम आचार और उत्तरदायित्व के निर्वहन की उनकी सकारात्मक सोच का द्योतक है.
मैं आशा करता हूं
कि प्रत्येक अमेरिकी नागरिक, भले ही वो देश के किसी भी क्षेत्र का रहने वाला
हो, एक बार ठहर कर विवेक से ऐसी घटनाओं के बारे में विचार
करेगा. इस महान राष्ट्र के निर्माण में विभिन्न देशों के और विभिन्न पृष्ठभूमि से
आए लोगों ने योगदान दिया है. इसका निर्माण ‘सभी लोग समान हैं’, और ‘एक व्यक्ति के अधिकारों के हनन का अर्थ है, प्रत्येक नागरिक के अधिकारों पर प्रहार’ के मूल सिद्धांत पर हुआ
था.
आज हम दुनियाभर
में स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत समुदायों के अधिकारों की रक्षा हेतु वचनबद्ध हैं.
और अपने सैनिकों को वियतनाम या पश्चिमी बर्लिन भेजते समय केवल श्वेत अमेरिकियों को
प्राथमिकता नहीं.देते. इसलिए, आवश्यकता इस बात की है कि किसी भी वर्ण के
अमेरिकी छात्र बिना सुरक्षाकर्मियों की सहायता के किसी भी सार्वजनिक संस्था में
प्रवेश पाने के लिए स्वतंत्र हों.
किसी भी वर्ण के
अमेरिकी उपभोक्ता को बिना सड़कों पर प्रदर्शन किए होटल, रेस्त्रां, सिनेमाघर और खुदरा बिक्री केंद्रों जैसे
सार्वजनिक स्थलों पर समानता पर आधारित भेदभाव रहित सेवा मिले और प्रत्येक अमेरिकी
नागरिक बिना किसी रंगभेद के भयमुक्त होकर चुनाव में मतदान करने के लिए स्वतंत्र हो
संक्षेप में,इस महान राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी नस्ल अथवा रंगभेद के
प्रत्येक वह सुविधा और लाभ मिलना चाहिए जिसका एक अमेरिकी होने के नाते वो अधिकारी
है. वो अधिकारी है अपने और अपने बच्चों के प्रति उस सम्मानपूर्ण व्यवहार का, जिसकी वो समाज से अपेक्षा करता है लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और ही है.
आज अमेरिका के
किसी भी हिस्से में जन्मे श्वेत बालक की तुलना में उसी स्थान और उसी समय पर जन्मे
नीग्रो बालक की हाईस्कूल उत्तीर्ण करने की संभावना आधी, कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने और नौकरी पाने की संभावना एक तिहाई, बेरोजगार रह जाने की संभावना दोगुनी, 10,000/- डॉलर प्रतिवर्ष
की आमदनी की आशा श्वेत बालक की अपेक्षा एक बटा सात, औसत आयु श्वेत बालक से
सात वर्ष कम और औसत आय आधी है
ये किसी स्थान
विशेष का मुद्दा नहीं है. बल्कि आम नागरिकों की सुरक्षा हेतु ख़तरा उत्पन्न करने
वाली असंतोष की लहर के मूल में अलगाव और भेदभाव संबंधी कठिनाईयां हमारे देश के
प्रत्येक राज्य के प्रत्येक शहर में मौजूद हैं. ना ही ये कोई वैयक्तिक अथवा दल
विशेष से संबंधित मुद्दा है. ऐसे आंतरिक संकट के समय हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर
स्वयं को संगठित करना होगा. ये केवल कोई वैधानिक मुद्दा भी नहीं है. बेहतर यही है
कि बजाय सड़कों पर उतरने के, इस प्रकार के मामलों का हल अदालत के माध्यम से
निकाला जाए. इसके लिए प्रत्येक स्तर पर नए कानून बनाने की आवश्यकता है, लेकिन बस कानून भर बना देने से ही किसी व्यक्ति की सोच को बदला नहीं जा सकता
मुख्य रूप से
हमारे सामने मूल प्रश्न नैतिकता का.है. ये मुद्दा उतना ही पुराना है जितनी हमारी
धार्मिक पुस्तक और उतना ही स्पष्ट,
जितना कि हमारा संविधान.
मूल प्रश्न एक
अमेरिकी नागरिक की समानता का, समान अवसरों के अधिकार का और इस बात का है, कि जो अपेक्षा हम अपने लिए करते हैं, क्या अपने साथी अमेरिकी
नागरिक की ठीक वैसी अपेक्षा पर हम खरा उतरते हैं? मात्र अपनी चमड़ी के गाढ़े
रंग के कारण यदि कोई अमेरिकी नागरिक आम जनता के लिए बने रेस्त्रां में खाना नहीं
खा सकता, अपने बच्चों को श्रेष्ठ विद्यालयों में अच्छी शिक्षा नहीं
दिला सकता, अपना जन प्रतिनिधि चुनने के लिए मतदान नहीं कर
सकता यानी वह यदि उस स्वतंत्रता के साथ खुलकर नहीं जी सकता जिसकी कि हम सब अपने
लिए कामना करते हैं, तो उसके जैसा रंग और उसके स्थान पर आखिर कौन
होना चाहेगा! हममें से कौन है जो धैर्य और बाधाओं के ऐसे प्रतिरूप में खुद को पाकर
खुश होगा?
राष्ट्रपति लिंकन
द्वारा दासप्रथा को समाप्त किए जाने की ऐतिहासिक घटना को सौ से भी अधिक वर्ष बीत
चुके हैं, किंतु उन दासों के वंशज, उनके पौत्र-प्रपौत्र आज भी दासता से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाए हैं.
अन्याय के बंधनों से उन्हें आज भी पूरी तरह मुक्ति नहीं मिली है. वो आज भी सामाजिक
और आर्थिक दमन के जाल में फंसे हुए हैं. अगर हमारा केवल एक नागरिक भी स्वतंत्र
नहीं है तो हमारी आशाएं और राष्ट्र-स्वतंत्रता का हमारा गौरव बेमानी है.
हम संसारभर को
स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाते हैं, अपने घर के भीतर उसका पालन करते हैं, किंतु संसार को और उससे भी बढ़कर स्वयं को क्या हम यही जताना चाहते हैं कि
हमारे समाज में नीग्रो समाज के अलावा बाकी सभी को आज़ादी से जीने का हक है? या, हमारी इस धरती पर नीग्रो समाज के अलावा कोई भी अन्य नागरिक
दूसरे दर्जे का नहीं है? या फिर, अपवादस्वरूप नीग्रो समाज
को छोड़ दिया जाए तो हमारे देश में नस्ल, जाति अथवा रिहायशी
बस्तियों को लेकर कोई भेदभाव नहीं है?
अब समय आ चुका है
कि हम अपने वादों को पूरा करें. बर्मिंघम और अन्य स्थानों पर हुई भेदभावपूर्ण
घटनाओं के विरोध में उठी आवाज़ों को अनसुना कर पाना अब किसी भी स्थानीय अथवा केंद्रीय
सरकार या वैधानिक संस्था के लिए संभव नहीं है.
उत्तर से दक्षिण
तक, प्रत्येक शहर में भड़क रही असंतोष और नफ़रत की आग को काबू कर
पाना अब कानून के भी दायरे से बाहर होता जा रहा है. अन्याय के प्रतिकारस्वरूप अब
सड़कों पर धरना-प्रदर्शन और विरोध रैलियां आयोजित की जा रही हैं, जिसके कारण देशभर में तनाव हिंसा और जानमाल की हानि का भय पैदा हो गया है.
एक राष्ट्र ही
नहीं वरन एक इकाई के रूप में भी हम इस समय विकट नैतिक संकट के दौर से गुज़र रहे
हैं. . इस संकट को पुलिस की सख्ती से काबू में नहीं किया जा सकता. किंतु सड़कों पर
उत्तरोत्तर बढ़ते जा रहे प्रदर्शनों को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता. प्रतीकात्मक
कदम उठाकर, अथवा बातचीत के माध्यम से हालात को सामान्य
बनाना भी संभव नहीं है. इसलिए अब समय आ गया है कि हम राजनैतिक अधिवेशनों में, राज्य और स्थानीय वैधानिक परिषदों में और साथ ही अपने दैनिक क्रिया-कलापों में
भी समानता का सकारात्मक कदम उठाएं.
औरों पर दोषारोपण
करना, या इसे एक खास तबक़े की समस्या मान लेना, या फिर परिस्थितियों पर खेद प्रकट कर देना ही समस्या का हल नहीं है. हमें आज
खुद को एक शांतिपूर्ण और रचनात्मक क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए तैयार करना है.
निष्क्रिय और मूक
होकर बैठे रहने से अंतत: केवल शर्मिन्दगी और हिंसा को ही बढ़ावा मिलता है. सही
मायनों में सत्य और वास्तविकता को पहचानने वाले लोग ही साहसपूर्ण ढंग से स्थितियों
से निपटने में सक्षम होते हैं
आने वाले सप्ताह
में मैं संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस से आग्रह करूंगा कि जो कदम इस पूरी सदी
में नहीं उठाया गया, वो कदम उठाते हुए हम वादा करें कि अमेरिका के
आम जन-जीवन अथवा कानून में नस्लवाद के लिए अब कोई स्थान नहीं होगा. संघीय
न्यायपालिका ने भी न्यायपालिका के कर्मचारियों की नियुक्ति, न्यायिक सुविधाओं के उपयोग और न्यायपलिका द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त आवासों
की बिक्री जैसे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी विषयों में इस प्रस्ताव का
समर्थन किया है .
किंतु कुछ
अपरिहार्य कदम ऐसे हैं जो केवल सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जिनका इसी
सत्र में उठाया जाना अत्यावश्यक है. समानता के अधिकार के पुराने कानून में, जो आज भी हम पर लागू है, प्रत्येक गैरकानूनी कार्य के बदले सज़ा का
प्रावधान है. किंतु देश के कई हिस्सों में यदि नीग्रो समाज पर अत्याचार होता है तो
हमारा यही कानून मौन हो जाता है. यदि सरकार इस दिशा में कोई पहल नहीं करती, तो इस दबे-कुचले समाज के पास सड़कों पर उतरने के अलावा और कोई चारा ही नहीं
होगा.
इसलिए मैं
कांग्रेस से मांग करता हूं कि वो यथाशीघ्र ऐसा कानून लाए जिसके तहत अमेरिका के
प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के होटल, रेस्त्रां, सिनेमाघर और खुदरा बिक्री केंद्र जैसे सभी सार्वजनिक स्थानों पर समान सेवा
पाने का अधिकार हो.
मेरी दृष्टि में
ये एक मूल-अधिकार है. इससे वंचित किये जाने का अर्थ है किसी का तिरस्कार करना, जो पूर्णत: अनुचित होने के बावजूद अमेरिका में आज साल 1963 में भी चलन में है.
हाल ही में
प्रमुख व्यवसायियों और उनके नेताओं के साथ हुई मुलाक़ातों के दौरान मैंने उन सभी से
आग्रह किया कि वे स्वेच्छा से इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएं और मुझे अत्यंत
उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं.पिछले दो सप्ताह में 75 शहरों में इन
सार्वजनिक स्थलों पर भेदभाव की समाप्ति की दिशा में कदम उठाए जाने के संकेत मिलने
आरंभ हो गए हैं. किंतु कई व्यवसायी ऐसे हैं जो चाहते हुए भी अकेले अपने बल पर ऐसा
क्रांतिकारी कदम उठाने में हिचकिचा रहे हैं.इसलिए यदि हम इस समस्या का शांतिपूर्ण
समाधान चाहते हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर हमें ऐसा कानून लाना ही होगा.
मैं कांग्रेस से
इस बात का भी निवेदन करना चाहूंगा कि वो सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में होने
वाले भेदभाव को समाप्त करने वाला कानून बनाने के लिए संघीय सरकार को प्राधिकृत
करे. हम जिलास्तर पर कई क्षेत्रों में स्वैच्छिक ढंग से सामाजिक एकीकरण की दिशा
में सफल हुए हैं. दर्जनों संस्थानों में नीग्रो समाज को बिना किसी हिंसा के प्रवेश
मिलने लगा है. आज हमारे सभी 50 राज्यों में, सरकार समर्थित संस्थानों
में आप कम से कम एक नीग्रो को तो उपस्थित पाएंगे ही, किंतु सामाजिक परिवर्तन
की ये गति बहुत धीमी है.
बहुत से नीग्रो
बच्चे, जिन्होंने 9 साल पहले उच्चतम न्यायालय के निर्णय के समय
पृथक्कृत विद्यालयों में प्रवेश लिया था, वो इस वर्ष पृथक्कृत
हाईस्कूलों में प्रवेश लेंगे, जिसके कारण होने वाली क्षति की पूर्ति कभी नहीं
की जा सकेगी. पर्याप्त शिक्षा के अभाव में एक नीग्रो नागरिक को सम्मानजनक नौकरी
पाने से वंचित रह जाना पड़ता है.
अत: उच्चतम
न्यायालय के आदेश के क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व पूरी तरह से उन पर नहीं छोड़ा जा
सकता जो उत्पीड़न के शिकार हैं अथवा जो आर्थिक संसाधनों से वंचित होने के कारण
कानूनी लड़ाई लड़ने में असमर्थ हैं.
इसके अलावा ‘मतदान का अधिकार’ को संरक्षण जैसे अन्य मुद्दों को लेकर भी
निवेदन किया जाएगा. किंतु मैं एक बार फिर से दोहराना चाहूंगा कि इस समस्या का
समाधान अकेली न्यायपालिका नहीं कर सकती. इसका समाधान अमेरिका के प्रत्येक समुदाय
और प्रत्येक घर में खोजा जाना चाहिए.
इस संदर्भ में
मैं उत्तर से दक्षिण तक उन सभी नागरिकों का अभिनंदन करना चाहूंगा, जो अपने अपने समुदायों में मानव-कल्याण के सद्कार्य में जुटे हुए हैं. वो ये
कार्य कानूनी बाध्यता के कारण नहीं वरन मानवीय संवेदनाओं से वशीभूत होकर कर रहे
हैं.
उदाहरण के लिए
दुनिया के कई हिस्सों में जान हथेली पर लेकर स्वतंत्रता-संबंधी चुनौतियों का सामना
कर रहे हमारे थल व नौ-सैनिक, जिनके साहस और स्वाभिमान को मैं सलाम करता हूं.
मेरे प्रिय
साथियों, ये एक ऐसी विकट समस्या है, जिसका सामना हमें उत्तर
से लेकर दक्षिण तक, देश के प्रत्येक शहर में करना पड़ रहा है. आज
हमारे देश में श्वेत बेरोज़गारों की तुलना में नीग्रो बेरोज़गारों की संख्या दो से
तीन गुना अधिक है.पर्याप्त शिक्षा से वंचित, बड़े शहरों की ओर पलायन
करते, समानता के अधिकार से वंचित, रेस्त्रां में भोजन करने
अथवा सिनेमाघरों में प्रवेश के अवसरों और सम्मानजनक शिक्षा की प्राप्ति के अधिकार
से और योग्य होने के बावजूद आज भी राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश से वंचित, नौकरी पाने में असफल और निराश हो चले हमारे युवा! ये वो मुद्दे हैं जिन्हें
लेकर केवल राष्ट्रपति अथवा कांग्रेस के सदस्य अथवा राज्यपालों को ही नहीं बल्कि
संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रत्येक नागरिक को जागरुक होना है.
ये हमारा देश है.
इस देश का निर्माण हम सभी के प्रयासों से हुआ है और यहां के प्रत्येक नागरिक को
अपनी योग्यता के संवर्धन के अवसर प्राप्त करने का पूरा अधिकार है.
हम देश की 10
प्रतिशत जनता से यह नहीं कह सकते कि तुम्हें कोई अधिकार नहीं है कि तुम अपनी आने
वाली पीढ़ियों की योग्यताओं को पहचान कर उन्हें बढ़ावा दो, या बिना सड़कों पर उतरे तुम अपने अधिकार पाने के पात्र नहीं हो. मेरा दृढ़
विश्वास है कि हम उस 10 प्रतिशत जनता के ऋणी हैं, और उस ऋणभार से मुक्त
होकर हमें एक आदर्श राष्ट्र का निर्माण करना है.
अत: मैं निवेदन
करता हूं कि हम सभी लोग अमेरिकी समाज को प्रतिगामी बनाने में सहायता करें, और जिस सम्मानजनक और समान व्यवहार की अपेक्षा हम अपने लिए करते हैं, वैसा ही व्यवहार हम अमेरिकी समाज के प्रत्येक बालक के साथ करें ताकि वो अपनी
नैसर्गिक योग्यता के अनुरूप उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर सके.
मैं मानता हूं कि
सभी बच्चे समान रूप से क्षमतावान,
योग्य, और निपुण नहीं होते, किंतु अपनी योग्यताओं के संवर्धन के लिए उन्हें
समान अवसर अवश्य मिलने चाहिएं ताकि वो जीवन में खुद को साबित कर सकें.
हमें अधिकार है
नीग्रो समाज से आशा करने का कि वो अपने उत्तरदायित्व को समझें, कानून का पालन करें, किंतु उन्हें भी अधिकार है इस बात की आशा करने
का कि देश का कानून निष्पक्ष हो,
और जैसा कि नई शताब्दी
में प्रवेश के समय जस्टिस हर्लान ने कहा था, संविधान को पूरी तरह से
वर्णांध होना चाहिए
यही मुद्दा आज
चर्चा का विषय है और यही वह मुद्दा है जो इस राष्ट्र और इसके मूल्यों के लिए घोर
चिंता का विषय बना हुआ है.इससे निपटने के लिए मुझे इस देश के सभी निवासियों का
सहयोग चाहिए.
धन्यवाद.
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