आज सामाजिक पत्रकारिता को लेकर चिंतन और मनन होना चाहिए
संवाददाता: रघुबीर सिंह गाड़ेगाँवलिया
आजीविका के संघर्ष के दौर में जब मैं सन 1980 में पत्रकारिता के क्षेत्र में आया था तो अपने
सीनियर से एक ही सिद्धांत सिखा था, ‘फीयर नन, फेवर नन’, किसी से डरो नहीं और और किसी को डराओ भी नहीं l
जो सच है उसे ही लिखो और
अख़बार के माध्यम से पाठको तक पहुँचाओ l
मैं रैगर हूँ और रैगर समाज के विकास के बारे में सोचता हूँ l मैं कई अन्य सामाजिक संस्थाओं से जुडा हुआ हूँ l समाज के नेताओ और व्यक्तियों
में व्याप्त दोहरेपन हमेशा मुझे कचोटा रहा है, अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न
मिश्रण को कलम द्वारा कागज़ पर उकेरने का प्रयास किया है l मेरा दोष है कि मैंने समाज विकास को लेकर सामाजिक
नेतृत्व के लच्चर व्यवस्था के मुद्दों पर लिखा है। आज समाज में इस बात पर विचार
होना चाहिए कि समाज को चाटुकारिता की पत्रकारिता चाहिए या निष्पक्ष और निडर
पत्रकारिता चाहिए l
आज समाज में एक दुसरे से व्यक्ति के मन में डर व्याप्त है जिसके कारण समाज में
हो रहे गलत काम का कोई खुलकर विरोध नहीं करता, दबी जुबान में सब विरोध करते है । ये दोहरापन और
दोगलापन समाज विकास में मुख्य रूप से बाधक है । फिर कैसे समाज का विकास होगा l
कई बार देखा गया है कि समाज के नेतागण और समाजसेवी लोग उच्च आदर्श और
सद्विचारों का बखान तो खूब करते हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और है l अगर मेरे जैसे किसी पत्रकार ने सामाजिक नेताओ की
नीतियों और कार्यशैली की विवेचना करते हुए अपनी वाणी और लेखनी की शक्ति से सच्चाई
को उजागर करते हुए आलोचना कर दी तो बस वो पत्रकार तो इनकी आँखों में खटक गया और ये
उसे अपना हमेशा दुश्मन मानने लग जाते है l जबकि एक पत्रकार का धर्म ही है कि वह हमेशा विपक्ष में रहे
और अच्छे कार्यो की प्रसंशा करे तथा गलत कार्य और गलत नीतियों की आलोचना करे l
सच कहूँ तो पत्रकार के एक ही व्यक्तिव में इतने रूप छुपे हुए हैं l पत्रकार समाज को मार्ग
दिखाने वाला, सूचना देने एवं समाज को जागरूक बनाने वाला, पीड़ितों को राहत पहुँचाने वाला, असहायों को सम्बल बनाने वाला
होता है l अपनी कलम की शक्ति
से अज्ञानियों को ज्ञान एवं भटके हुए शासक को सद्बुद्धि प्रदान करने कार्य करता है
l एक पत्रकार
निस्वार्थ समाज की सेवा करता है और समाज का विकास और समाज में बन्धुत्व की स्थापना
चाहता है ।
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